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Friday, April 9, 2010

खिचड़ी मिक्स

                                        आज मस्ती के मूड में हैं हम तो सोचा की कुछ लिख लिया जाये पर ऐसा कुछ बढ़िया दिमाग में आ नहीं रहा है | आई पी एल की धूम हो रही है मैंने भी सोचा एक टीम का ओनर बन जाऊं पर क्या कर सकते हैं धनाड्य लोगों के इस खेल में गरीबों की गिनती केवल उस वक़्त होगी जब चैरिटी का खेल होगा | खैर जैसे तैसे जुगाड़ लगा के एक टीम का मेम्बर  ही बन गया | भला हो मोदी साहब का मालिक न सही मेम्बर ही सही कुछ बना तो दिया | अब क्या करता कुछ आता जाता तो था नहीं सो थोड़ा और जुगाड़ लगाया अब मैं भोजपुरिया इलेवन का ओनर हूँ | रौवा ई न समझें की भोजपुरिया इलेवन प्रदर्शन करै मा पीछे रही ना बिलकुल ना हम तो बस औरन के सम्मान मा हार सकते हैं वरना तो हम भी जीतना जानते हैं | अब आप ही देख लो राज ठाकरे साहब के सम्मान में ही तो हम हमेशा चुप रहे वरना क्या हम पिस्टल ले के घुमे नहीं पूरे मुंबई में वो तो आतंकवादी समझ के मार दिए गए और पुलिस ने भी साथ नहीं दिया था | हम कहाँ कमजोर हुए पुलिस या फिर राज को कहिये या फिर महाराष्ट्र को कहिये एक ही पिस्टल से डर गए हिंदी तो पूरे भारत की है | खैर ये तो टीम की बात नहीं है अगर मेरी टीम से सचिन नहीं खेलेंगे  तो क्या हुआ उनका सम्मान थोड़ी ना कम होगा वो तो उनकी महानता है की वो मेरी टीम के खिलाड़ियों को हमेशा कुछ सिखा देते है बता देते हैं.... और ये भी बोल देते हैं किसी को भी टीम में ले लो पर आंग्ल भाषा का ज्ञान तो होना ही चाहिए हिंदी तो बोल नहीं सकते ना राज की बात है केवल हिंदी में ही लोगों को दिक्कत है | अगर लगातार हारते तो भी सम्मान बचाने तो उतरते ही या नेताओं के तरह बोल देते अगली टीम बेमानी कर रही है जैसे अभी कहा था सरकारी समिति बनेगी और नक्सली हमले की तह तक जायेंगे | खैर हमारी टीम मैदान में उतरी मैदान पर इतनी गलती हुई की क्या कहें पहली की हमने विदेशी कोच नहीं किया दूसरी चीएर लीडर्स भी नहीं थी तो टीम के खिलाडी बौन्डरी पर ही लगे रहे चौके तो एक नहीं गए ................... इतने गए की हिसाब नहीं लगा | इधर तो एक रन बन रहे थे उधर नेताओं की तरह खिलाड़ी भी एक दूसरे पर दोष मढ़ते रहे कहे लगे की एकरा के संगे हम ना खेलब इ टीम जीती ना जीती हमरा के फिकर नइखे | हम पूछे का हुआ का तो बोले की रवि किशन का ना बुला सकेला एकरा खातिर खेले में मन ना लागेला | हम भी खूब बढ़िया उदाहरण सोच रखे थे बोल दिया दादा को देखो बिना किसी सुर और तान के नगमे गए जा रहे हैं चौके लगाये जा रहे हैं | एक बारगी दिमाग में आया था की हॉकी  टीम ले लूं पर गिल साहब ने सही कहा आइ पी एल से हुए लाभार्जन से अन्य खेलों का विकास होना चाहिए तो मैंने भी सोचा पहले लाभार्जित हो जाएँ तब आगे की सोचें | 
                                  अब और दिमाग काम नहीं कर रहा है आइ पी एल ४ में मिलूँगा तब तक टीम में चेएर लीडर्स की व्यवस्था कर लूं खिलाडियों का मन लगेगा समझा करो मैदान में नहीं रिजर्व बेंच से ही आइ पी एल का मजा ले सकेंगे टीम भी जीतेगी |
                                       

2 comments:

  1. aapki khichadi kafi achha laga .bahut sundar our swadisht...subhakaamanaaye.

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  2. khichadi achchi hai....tadka maar lena agli bar..waise swadisht...

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