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Wednesday, December 21, 2011

four lines again

क्यूँ मेरी हर सांस को अपना नाम बता गए हो, क्यूँ तुम मुझे इस वक़्त हर वक़्त अपना फ़रियादी बना गए हो

चलती हैं की रहगुजर न रहोगे अब तुम इस वक़्त, पता नहीं शायद इन्हें ये तुम हो जो मेरी मासूम रगों में समां

गए हो 

यूँ तो हर वक़्त फ़ना होती हैं तेरे नाम पर फ़ना करती हैं मेरे वक़्त को बेवक्त,क्यूँ इन्हें हर वक़्त के लिए अपना


बना गए हो


इजाज़त भी नहीं लेती हैं हमसे तुम्हारी इनायत को, कुछ यूँ तुम मुझे और मेरे जिन्दा दिल को जला गए हो


कुछ यूँ तुम तडपा गए हो_______उमेश सिंह

Monday, December 5, 2011

My Lines


तुम में ही सिमट के रह गए हैं हम ये कैसी खुद की रूह को मैंने सज़ा दी है

तेरे अहम की ख़ामोशी न टूटे न रूठे तेरा अहम कभी, इसलिए ख़ामोशी खुद की हमने बढ़ा दी है

अहमियत कुछ ज्यादा है तेरी मेरी नजरों में, तेरे लिए मैंने अपनी नजरों से झुकने की इल्तज़ा की है

न समझे हो मुझे न समझो ग़र मेरे प्यार को,समझना मैं था ही नहीं कभी, खुश रहो तुम तुम्हारे खुश रहने की

हमने हर पल दुआ की है______उमेश सिंह