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Saturday, July 6, 2013

my favarte poem :)

शब्द्घोष की प्रतिध्वनि से गुंजायमान आकाश हो 
भरतभूमि की श्रेष्ठता का सारी दुनिया को आभाष हो 

प्रचंड भाव संग हो तेरे मन में उल्लास हो 
देश भाव अर्श पे न कोई और प्यास हो 

मृदंगथाप शंखनाद न भय का लिबास हो
ऊँचाई हो आकाश की बस विजय ही विश्वास हो

नियति साथ न दे मन में लक्ष्य का अभ्यास हो
पथ कठिन है रात-दिन बस चलने का प्रयास हो

तिमिर भांति दीनभाव और दुर्बलता न पास हो
संग बादलों सी हो गरज मन सूर्य का प्रकाश हो

घृणा द्वेष और कपट न इनका प्रसार हो
प्रकृति सी उदारता और प्रकृति का विस्तार हो

असंख्य तारे तोड़ लो कुछ ऐसा विन्यास हो
धैर्य बने सागर धरा जीत का एहसास हो

शब्द्घोष की प्रतिध्वनि से गुंजायमान आकाश हो
भरतभूमि की श्रेष्ठता का सारी दुनिया को आभाष हो


उमेश सिंह