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Friday, October 11, 2013

ना मिटने वाली आभ है

सदी के महानायक को जन्मदिन की बधाई आप ऐसे ही अग्रसर रहें और प्रेरणा पुंज बनकर प्रकाश फैलाते हुए देश की सेवा हजारों वर्षों तक करते रहें !

ना मिटने वाली आभ है

ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है 

चलता रहा अथक पथिक बनकर जिस भी पथ पे वो पथ भी शुक्रेगुजार है
ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है

खुद की चाह पर विजय है तू अजर है तू अमर है
सिलसिलों से सिलवटों में बिछता तू ख़ुद्दार है
ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है

तू हिन्दू है तू मुश्लिम भी इस देश का सरताज है
ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है

बनके पथ पे पथ बना है तू यहाँ रफ़्तार है
चाहा सबको चाह बनकर तू चाहते इजहार है यूँ प्यार का हकदार है
ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है

अहम् तुझको छू न पाया नम्र बन खुद निकट आया
तू मुक्कदर का सिकंदर बस तू दिले दिलदार है
ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है

बनती तुझसे हस्त रेखा तू मस्तके ललकार है
मिट्टी देश की करती सुगन्धित इस देश का तू प्यार है
ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है

न तू हिन्दू न तू मुश्लिम हर कौम का सरदार है
एक कौम है कलाकार की कौमे नफरतों का जिन्दा तू प्रतिकार है
समझा तुझको भावना से तू भारतवर्ष की हुंकार है

ना मिटने वाली आभ है तू अमिताभ है
हाँ ना मिटने वाली आभ है तू अमिट-आभ है
तू अमिताभ है



उमेश सिंह

Tuesday, October 8, 2013

Wish i had the lens__!

Wish i had the lens

Think about the future and just forgive me for once
Another chance would be enough for me clouds becoming dense 

Forgive me dear for my deeds this time with your sense 
I'm unaware how we came this far ? Oh God to see future may i had lens

Making remarks if make you happy it will be of past tense
Break out the narrow shackle it bounds you in fence

Think about the future and just forgive me for once
Come again to see me happy for the words above and hence


Umesh Singh 
दरिया टूट के आगोश में समंदर के आज यहाँ, नेस्तनाबूत होगा
दिनों से था जो दर्द वजहे प्यार से मुखातिब, महफिले आज वो ताबूत होगा

जुर्रते रज़ा दिल की थी क्या करता, अब नासाज़ी भी तजुर्बे साबूत होगा
मसरूफियत खुदसे होगी खुदसे होगी मुहब्बत, जर्रा भी मेरा मुझसे नाटूट होगा

उमेश सिंह
मादरे वतन की सेवा को मेरा आखिरी नमन आया है 
देख तिरंगे में लिपट के सरहद से तेरा रतन आया है 

साँस भारी थी नब्ज रुकने तक तिरंगा उठाया है 
कदम न रुके थमने तक सरहदे फिर नापाक साया है 

खादी यहाँ हुई निशक्त यूँ जीना डरके जाया है
अमन शक्ति से होता कायम पुरखों ने ये फ़रमाया है

सर काटे संसद बांटे भरम उसे ये आया है
सबक सिखा दो इस बारी की देश अभी झुंझलाया है

मौत मेरी थी मैं खुश हूँ शहीदों में नाम जुड़वाया है
रूह मेरी अब भी सीमा पर यूँ उसको सफल बनाया है

मादरे वतन की सेवा को मेरा आखिरी नमन आया है
देख तिरंगे में लिपट के सरहद से तेरा रतन आया है


उमेश सिंह 

Politics


नेता बैठे समाचार में मंद मंद मुस्काते 
पूछो बात विकास की तो बुर्का ओढ़ के जाते 

समाचार विश्लेषड में खुदही को सत्य बताते
तथ्यपरक तो हैं मुमकिनन पर मुद्दे से भटकाते

विभीषण के जो शब्द लिखूं तो ऐसे मुंह बिचकाते
कथनी करनी-करनी कथनी में सभीको गलत ठहराते

फंदा ढीला फेंका और मजबूत पकड़ जतलाते
निकल भगा है वो जो देखो भाऊँ भाऊँ चिल्लाते

करते सौदा पैसों का जनसेवा है स्वांग रचाते
फंसके खुद ही खुद के जाल में खट्टे अंगूर बताते

धन की सुनते जन की कहते हर जगह पे जाल बिछाते
वंशवाद की प्रथा बढ़ा कर उसको घर से संसद तक फैलाते

खुद की गर्दन फंसी कभी तो अंत शंट चिल्लाते
वो है ये है-ये है वो है में नेता प्यारे भर्ष्टाचार ही गोल कर जाते

नेता बैठे समाचार में मंद मंद मुस्काते
पूछो बात विकास की तो बुर्का ओढ़ के जाते


उमेश 
सिंह

Saturday, July 6, 2013

my favarte poem :)

शब्द्घोष की प्रतिध्वनि से गुंजायमान आकाश हो 
भरतभूमि की श्रेष्ठता का सारी दुनिया को आभाष हो 

प्रचंड भाव संग हो तेरे मन में उल्लास हो 
देश भाव अर्श पे न कोई और प्यास हो 

मृदंगथाप शंखनाद न भय का लिबास हो
ऊँचाई हो आकाश की बस विजय ही विश्वास हो

नियति साथ न दे मन में लक्ष्य का अभ्यास हो
पथ कठिन है रात-दिन बस चलने का प्रयास हो

तिमिर भांति दीनभाव और दुर्बलता न पास हो
संग बादलों सी हो गरज मन सूर्य का प्रकाश हो

घृणा द्वेष और कपट न इनका प्रसार हो
प्रकृति सी उदारता और प्रकृति का विस्तार हो

असंख्य तारे तोड़ लो कुछ ऐसा विन्यास हो
धैर्य बने सागर धरा जीत का एहसास हो

शब्द्घोष की प्रतिध्वनि से गुंजायमान आकाश हो
भरतभूमि की श्रेष्ठता का सारी दुनिया को आभाष हो


उमेश सिंह

Sunday, January 27, 2013

कतरा कुछ तेरा जुड़ा है इस देश की हर साँस में
क्यूँ गँवाते हो समय बस देश के परिहास में

है सही होगी कमी कुछ हमारे पास में
आओ चलें सब साथ की देशहित हो अभ्यास में

आपाधापी और खिलाफ़त हम क्यूँ बंधे हैं पाश में
क्या रत्ती भर भी जोड़ा खुद को देश के विकास में

मेरा ये है मेरा वो बस ''मै'' यहाँ है वास में
देश मेरा मेरी मिट्टी कब दिखेगी प्यास में

लो शपथ नजरें लगें बस देश के विन्यास में
रमते जाओ बंधते जाओ देश के अभिपाश में

कतरा कुछ तेरा जुड़ा है इस देश की हर साँस में
क्यूँ गँवाते हो समय बस देश के परिहास में


उमेश सिंह
समस्त भारतियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई
थक गया हूँ गोद में लेकर सारे दर्द मिटा दे , माँ इस बार सुला दे मुझे

तेरे रोटियों की महक जहां भी रहूँ सताती है, हाथों से वो रोटियां खिला दे मुझे

बरसातें सही तुने मेरे खातिर ठण्ड भी, लू के इन जलते थपेड़ों से बचा ले मुझे


तुम हो समझती जो सब, मेरे आंसूं न दिखे, आँचल में कुछ यूँ छिपा ले मुझे

गया मंदिर भी खुदा से पूछने गिरिज़ाघर गुरूद्वारे का पता सबने तेरा नाम लिया, माँ अपने चरणों से गंगा पिला दे मुझे

तू कहती थी कुछ और आँखें कहती थी तेरी, प्यार से डराने वाली आँखें फिर दिखा दे मुझे

थक गया हूँ गोद में लेकर सारे दर्द मिटा दे, माँ इस बार सुला दे मुझे____उमेश सिंह

Sunday, January 13, 2013

हर शब्द से सीखिए हर भाव से सीखिए, मिलता जाये जो उसे बड़े चाव से सीखिए

मुश्किलें हल हो जाएँगी यूँ राह चलते हुए उस पथ पे गुजरे हर पाँव से सीखिए

पतछड़ भी होगा बे-मौसम, पत्तियों के फिर लौट आने वाले स्वाभाव से सीखिए

गहरा पड़े निशान ऐसा जलो तुम, न बुझने वाले दिए के ताव से सीखिए

समय नदी सा बह जायेगा, कैसे बढ़ते जाएँ विपरीत धारा में चलती नाव से सीखिए

शेर हैं झुंडों में तो बकरियां भी जिन्दा, प्रकीर्ति के इस अनूठे प्रभाव से सीखिए


उमेश सिंह

Wednesday, January 2, 2013

A BIG REASON TO WORRY :( ____ DON"T I LOOK LIKE YOUR OWN CHILD ??


We ain't gonna die tomorrow on 21/12/12 as per MAYA calendar but we are dead already on moral ground and on humanity ground. We have created a black hole situation for ourselves only and now we don't have a direction to go. Best example's are media, human rights, politicians, and false thinkers.......

Day before today on a news channel people were talking over police action that they aren't working good....one of valued politician said...ki POLICE ko apna dar banana hoga...kaise banega nahi bataya becouse if police will become like this they will have a chance to curse opposition and they will talk like.....ye police ka GUNDARAJ hai kya ? aise manmaani nahi chal sakti hai...sarkaar natik roop se gir chuki hai....now what was that  mister politician when you were exclaming.....ki police ka dar khatm ho gaya hai use apna dar banana chahiye....

People are demanding death penalty for rapist's (i also).....news channels will follow a debate over this with 4-5 people and 4-5 cups of tea, coffee whatever.......a human right activist will start saying with a high note....like they were saying on KASAB case and now they will back rapist "FANSI iska antim upay nahi hai usko umra kaid honi chahiye taki usko jindgi bhar takleef dekhni pade"....what about if that girl was you or your girl Mr./Mrs Human Rights activist.....

Two people are discussing over the mentality of rapist.....bachapan se sudharne ki jarurat hai logon se baat karni chahiye logon ko gharon se hi ye sab seekhna chahiye ki aurton se kaisa vyahaar karein.....What is the total population of INDIA Mr./Mrs. thinker ? What is the percentage of literacy ?

Stop behaving like a robot you morons...this is the real world and you still living in books.....those things what you were reading(not learning) to pass the exam is not applicable in daily life situation.....

They are not human beings they must be hanged till death and after death they should be hanged one more time for vaulters. and for natural decomposers....!!!

MY FIRST ENGLISH POEM

I've gone through severe pain

I treat them as my gain



Got shivered always when it rain

Have experienced silence and was frightened in boundary of blame



It wasn't my desire to burn myself in anger's flame

But all occurred as Almighty's game


I've gone through severe pain

But i treat them as my gain



Umesh Singh
ना मुझको माफ़ी मिली
मैंने ना खुद को माफ़ किया

हरपल मरता हूँ जीने को मैं हरपल
ख़ुदा तूने भी तो अच्छा इन्साफ किया

यूँ ही कुछ जो सर मेरे इल्जाम हुआ
जिए थे इक पल 'आज' फिर मौत को साज़ लिया

सोचा था भूलेंगे कल वो सब कुछ मेरे बाद
बोया ना था काटा जो भी यूँ खुद का अवसान किया

उम्मीदें सब मुझसे झूठा मेरा मान किया
धक्का देकर आसमान से अपना-अपना अरमान किया

उमेश सिंह

वीभत्स है व्यभिचार है कितनो का ये विचार है !!



सम्मान है वतन तेरा इस दिल में 
क्या करें है जो तेरी आबरू मुश्किल में ?

हर दफ़े यूँ लुटती इज्ज़त बेटियों की
क्यूँ खड़ी है नंगे इस बाज़ार की महफ़िल में ?

पुरुषार्थ का प्रदर्शन यूँ नहीं होता है सुनलो 
किस तरफ हो तुम ये चुनलो वक़्त की दरकार सुनलो 

बेटी तेरी बेबस पूछती है आज सबसे
थी 'मैं' कल को तेरी आबरू भी न आ पड़े मुश्किल में

उमेश सिंह