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Saturday, September 29, 2012

ज बोलिहें ता कहबो बोलत हैं न बोलिहें ता कहबो बिन बोले कछु न होई!





खाकी-खादी के प्रचार हेतु ये शीर्षक अच्छा होना चाहिए ! समझ लीजिये या चुप रहने के लिए डंडे का डर पाल लीजिये ! नेताओं से पूछिए इस प्रकार की चक्...करघिन्नियाँ उन्ही के जेबों से तो निकलकर नाचती हैं या फिर पुलिसिया विभाग पर नजर डालिए मियाँ पसंद न हों तो भी कबूल करवा ही लेते हैं ! समझावनदास की सहायता से आपकी समस्त व्यग्रता को चुप करवा सकते हैं सारी लालसा तिनके के मानिंद इधर-उधर हवा में तैरती नजर आती है ! मजाक करूँ तो एक-दो बेईमान नेता खुदा को प्यारे हो जायें मजाक न करूँ तो भी हो जायें पर सच तो ये है की ये दोनों आपकी सेवा में हर वक़्त उपलब्ध होते हैं ! कभी पत्रकारों की खबर लेते हैं खबर देने के लिए तो कभी उसी घटना के हालत से अनभिज्ञ हो जाने की खबर देते हैं ! असीम त्रिवेदी का पड़ला भारी हुआ तो पक्ष क्या विपक्ष क्या जिसके वोट लेने की बारी त्रिवेदी जैसे लोग उनके वरना सत्ता के दौरान वोही गलत होते हैं ! जैसे साँप जहरीला न हो तो भी डरावना होता है ऐसे ही खादी भी होती है सब गलत नहीं होते पर भरोषा कैसे हो? अगर सच्चाई कड़वी होती है तो उसका फल मीठा होना चाहिए पर ऐसा होता ही नहीं है ! कम से कम पत्रकारों के साथ तो ऐसा नहीं होता ! सच दिखाकर भी झूठे बनते हैं पत्रकार, चाहे समय निकालकर या तथ्यों को छिपाकर खाकी-खादी बच ही निकलती है ! खादी पार्टी लाइन से विमुख नहीं होती तो खाकी पार्टी लाइन के समानांतर थोड़ा सा उसीके के नीचे-नीचे चलती है! भला हो न्यायपालिका का इतना अंतर तो बचा हैं ! बाबा रामदेव और अन्ना सरीखे लोग गर कुरता पहनते तो जाने क्या होता तलाशी हो जाती अन्ना की तो हुई भी है ! असम जले या जयललिता कुछ विद्रोहियों को खुश करने के लिए पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ होने वाले खेल को स्थगित कर दें बिना सोचे हुए की इसका संबंधों पर क्या असर होगा और कोई दूसरा देश श्रीलंका से नजदीकी रिश्ते न बना ले जो हमारे लिए सही न हो या फिर घोटालों की फ़ौज खड़ी हो तलाशी के लिए, निगाहें अन्ना असीम रामदेव को चुप कराने के तरीके ढूँढने और उनपर आरोप लगाने पर लगी होती है ! समर्थन इस लेख का मकसद नहीं है पर बात तो यही है____हम बोलेगा तो बोलेगे___