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Wednesday, December 5, 2012

SAMBHAWAMI SARVATHA SARV

तुक्केदार तीर पर गर अर्जुन करता विश्वास
भेद न पाता आँख वो न जीत की होती आस
गुरु भी लज्जित होते उसके न होती परीक्षा पास
करलो तुम भी अपने मन में अटल लक्ष्य का वास
निशान गर धुंधला जाये फिर करलो तरकश साफ़
जीतोगे हरपल तुम ही बन अर्जुन हर जीत भी होगी खाश____उमेश सिंह

Wednesday, November 7, 2012

कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है

कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !
चौरस से लूटा था जिसने महाभारत में जिसका हाथ है, करवाए संहार दुबारा उससे ही अब कुछ आस है !
अम्बानी की जेब में संसद, सांसदगण तो जिन्दा लाश हैं, क्या द्रोपदी हुआ है देश ये प्रश्न सताता आज है !
कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !
मकड़जाल में फंसी है जनता भ्रष्टाचार बना इक पाश है, नेताओं से उम्मीद अधम है भ्रष्ट-आचार जिनका विश्वास है !
भीष्म बने बैठे हैं वो जिनको इसका आभाष है, कहकर मैं भी चुप हो जाऊं क्या ये खुद का नहीं परिहास है ?
कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !
अगन धरा पर जल बन बरसे न जलेंगे ये संताप है, किस मिटटी के बने हैं ये क्या इन्हें जरा भी लाज है ?
अघोषित यमराज हुए हैं ये दोष लगाना भी इनपे पाप है, कहते-कहते थक जाओगे मर जाओगे इनका चोला हरपल साफ़ है !
कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !

उमेश सिंह

Four lines

हमारे अहम् को बस हमारा रहने दो टूटे थे जो कभी, उस टूटने को सहारा रहने दो

कितनी दफ़े लौट आओगे तुम गए थे जिस किनारे, दरमियाँ वो किनारा रहने दो

कहना वो मेरा बेपरवाही से जिंदा हूँ जिन्दादिली से, जिन्दगी में बची बहारा रहने दो

ज़ज्ब कर लूँगा हर ज़ज्बात दफ़न होने को बुनियाद तक, न हारा हूँ ना-हारा रहने दो

उमेश सिंह
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Friday, October 19, 2012

जे पावे ते पढ़े __


अम्मा गयीं चना भुनावे, घर म़ा पतोहू कै अबहीं न साख है, दामाद सबकै लूटत हैं ससुराल हमरै पै काहे सब चिल्लात हैं

दू-तीन कै चार किहिन ताऊ केकरे घर से जात है, आगेव करिहें करत रहिहें पूर्वजन कै आत्मा चिल्लात है

एक्के बारी लुटबो सभे एक्के बार म़ा का होई जात है, कछु और धरे हौ जेबा मा वोहके कौन हिसाब है

अम्मा गयीं चना भुनावे पतोहू कै न हियाँ बिसात है, अइहें तब देखा जाई अम्मा का चिंता आज है

एतना जानो गनीमत है तबहीं केजरी चिल्लात हैं, लूटेव अब कुछ धरम देखो पिछेव नंबर लाग है

सबकै लाठी ताऊ सबकै भैंस कहावत मा कौनो आग है, इ कहावत सही न होई खुर्शीद कै अबहीं राज है

अम्मा गयीं चना भुनावे पतोहू कै न हियाँ बिसात है, अइहें तब देखा जाई अम्मा का चिंता आज है

अंग्रेजन कै गुलाम रहा हैं जैसे और दिन रहै मा का जात है, खटिया भैया पाकर लिहें जब केहू हियाँ अंगरात है

डंडा-वंडा न परिहे एहिजा अतिथि पूजा जात हैं, मौन रहौ या तेज दहाड़ो खिचड़ी न पकिहे  हियाँ बहुत रात है

अम्मा गयीं चना भुनावे पतोहू कै न हियाँ बिसात है, अइहें तब देखा जाई अम्मा का चिंता आज है

काहे उमेश गोंडावी बैठो चुप्पे या खटिया तूरो, कुछ न हुआ न कुछ होई हियाँ बस अब हिजरन  कै राज है

क़ेहकै-क़ेहकै  नाम लिखा है के-के पाक साफ़ है, ताऊ पता न चलिहे जल्दी हियाँ अदालतौ मा पट्टी लाग है

अम्मा गयीं चना भुनावे पतोहू कै न हियाँ बिसात है, अइहें तब देखा जाई अम्मा का चिंता आज है____उमेश सिंह

Saturday, September 29, 2012

ज बोलिहें ता कहबो बोलत हैं न बोलिहें ता कहबो बिन बोले कछु न होई!





खाकी-खादी के प्रचार हेतु ये शीर्षक अच्छा होना चाहिए ! समझ लीजिये या चुप रहने के लिए डंडे का डर पाल लीजिये ! नेताओं से पूछिए इस प्रकार की चक्...करघिन्नियाँ उन्ही के जेबों से तो निकलकर नाचती हैं या फिर पुलिसिया विभाग पर नजर डालिए मियाँ पसंद न हों तो भी कबूल करवा ही लेते हैं ! समझावनदास की सहायता से आपकी समस्त व्यग्रता को चुप करवा सकते हैं सारी लालसा तिनके के मानिंद इधर-उधर हवा में तैरती नजर आती है ! मजाक करूँ तो एक-दो बेईमान नेता खुदा को प्यारे हो जायें मजाक न करूँ तो भी हो जायें पर सच तो ये है की ये दोनों आपकी सेवा में हर वक़्त उपलब्ध होते हैं ! कभी पत्रकारों की खबर लेते हैं खबर देने के लिए तो कभी उसी घटना के हालत से अनभिज्ञ हो जाने की खबर देते हैं ! असीम त्रिवेदी का पड़ला भारी हुआ तो पक्ष क्या विपक्ष क्या जिसके वोट लेने की बारी त्रिवेदी जैसे लोग उनके वरना सत्ता के दौरान वोही गलत होते हैं ! जैसे साँप जहरीला न हो तो भी डरावना होता है ऐसे ही खादी भी होती है सब गलत नहीं होते पर भरोषा कैसे हो? अगर सच्चाई कड़वी होती है तो उसका फल मीठा होना चाहिए पर ऐसा होता ही नहीं है ! कम से कम पत्रकारों के साथ तो ऐसा नहीं होता ! सच दिखाकर भी झूठे बनते हैं पत्रकार, चाहे समय निकालकर या तथ्यों को छिपाकर खाकी-खादी बच ही निकलती है ! खादी पार्टी लाइन से विमुख नहीं होती तो खाकी पार्टी लाइन के समानांतर थोड़ा सा उसीके के नीचे-नीचे चलती है! भला हो न्यायपालिका का इतना अंतर तो बचा हैं ! बाबा रामदेव और अन्ना सरीखे लोग गर कुरता पहनते तो जाने क्या होता तलाशी हो जाती अन्ना की तो हुई भी है ! असम जले या जयललिता कुछ विद्रोहियों को खुश करने के लिए पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ होने वाले खेल को स्थगित कर दें बिना सोचे हुए की इसका संबंधों पर क्या असर होगा और कोई दूसरा देश श्रीलंका से नजदीकी रिश्ते न बना ले जो हमारे लिए सही न हो या फिर घोटालों की फ़ौज खड़ी हो तलाशी के लिए, निगाहें अन्ना असीम रामदेव को चुप कराने के तरीके ढूँढने और उनपर आरोप लगाने पर लगी होती है ! समर्थन इस लेख का मकसद नहीं है पर बात तो यही है____हम बोलेगा तो बोलेगे___



Tuesday, August 14, 2012


वीरगाथा जो सुनाऊँ वीरों के बलिदान की, आँसू झर-झर बह उठेंगे आँखों से शमशान की
लाखों दीवाने जिस वतन के थे बड़े ब्रम्हांड से, ऐसे वीरों को नमन हैं, नमन उनके हर गुड़गान की

भगत सिंह जो थे अनोखे गजब थी हुंकार उनकी, डरते दुश्मन नाम सुनकर भारतवर
्ष के बलवान से
वीरगाथा जो सुनाऊँ वीरों के बलिदान की, आँसू झर-झर बह उठेंगे आँखों से शमशान की

पंडित चंद्रशेखर के किस्से थे यूँ अरमान से चकमा देके दुश्मनों को पायी, वीरगति अभिमान से
राजगुरु और बोस के किस्से सदृश बन जायेंगे, गर वतन पर अब कभी हम भी मरेंगे शान से

वीरगाथा जो सुनाऊँ वीरों के बलिदान की, आँसू झर-झर बह उठेंगे आँखों से शमशान की
जिनकी आँखों में थे न आँसू न कोई डर की झलक बस वतन था और वतन की आबरू उनकी ललक

लाखों दीवाने जिस वतन के थे बड़े ब्रम्हांड से, ऐसे वीरों को नमन हैं, नमन उनके हर गुड़गान की
वीरगाथा क्या सुनाऊं वीरों के बलिदान की, रो पड़ेंगे शब्द मेरे, उनकी उस पहचान से थी कभी जो लहू सी हिंदुस्तान की

उनकी गाथा क्या सुनाऊं जो बड़े ब्रम्हांड से,आँसू झर-झर बह उठेंगे आँखों से शमशान की
लाखों दीवाने जिस वतन के थे बड़े ब्रम्हांड से, ऐसे वीरों को नमन हैं, नमन उनके हर गुड़गान की____उमेश सिंह
 

Sunday, July 22, 2012

Four lines

बह कर हवा इन दरख्तों तक आती है तेरे घर से, इन दरख्तों पे बंदिशें क्यूँ लगा रहा हूँ मैं

मुसाफ़िर की तरह थे तुम मेरे जिन्दगी के पन्नों में जिन्हें मैं जानता था अपनी अहमियत से ज्यादा, उन्ही पन्नों को दूंढ कर हर यादें क्यूँ जला रहा हूँ मैं 

ये तो सच है तुम न थे कभी मै था तुझमे दरम्यान बनकर खुद पर दोष क्यूँ लगा रहा हूँ मैं

भीगी सी उन यादों में जो सुलगती है ''बिना जले'' जल रहा हूँ आती जाती इन सर्द हवाओं से ''बेवजह ही'' ये क्या और क्यूँ किये जा रहा हूँ मैं_____उमेश सिंह

Monday, July 16, 2012

जिसकी तोहमतों को भी अपनाना था, निगाहें मुवस्सर न हुईं उनकी आख़िरी मुलाकात में

ख़ूबसूरती से चले आतें हैं वो कभी यूँ ही, पैमाने में हमारे सुबह-शाम धड़कते जज़्बात में 

वो उनका हमसे नजरें फिरा के चले जाना न कभी वापस आना, न ही हमसे कहीं दूर जाना

मसरूफ कर देता है वो उनका दोस्त कहना दिलासा देना, कहा था उन्होंने जो उस बरसात 

में

जिसकी तोहमतों को भी अपनाना था, निगाहें मुवस्सर न हुईं उनकी आख़िरी मुलाकात में
___उमेश सिंह

Thursday, May 24, 2012

थक गया हूँ गोद में लेकर सारे दर्द मिटा दे मेरे, माँ इस बार सुला दे मुझे

तेरे रोटियों की महक जहां भी रहूँ सताती है, हाथों से खुद फिर वो रोटियां खिला दे मुझे 

बरसातें सही तुने मेरे खातिर ठण्ड भी, लू के इन जलते थपेड़ों से बचा ले मुझे 

तुम हो समझती हो जो सब मेरे आंसूं न दिखे,तू आँचल में कुछ यूँ छिपा ले मुझे

गया मंदिर भी खुदा से पूछने गिरिज़ाघर गुरूद्वारे का पता सबने तेरा नाम लिया, माँ अपने चरणों से गंगा पिला दे मुझे

तू कहती थी कुछ और आँखें कहती थी तेरी, प्यार से डराने वाली आँखें फिर दिखा दे मुझे

थक गया हूँ गोद में लेकर सारे दर्द मिटा दे मेरे, माँ इस बार सुला दे मुझे____उमेश सिंह
खुद को भुलाया ख़ुदा को भी मुझमें जब तुम आये, इबादत की तरह मेरे सहर-शाम पर अब तुम छाए

जिक्र तक न करते हम अपनी मोहब्बत का, खुद तुमने ही कह दिया था जो हम कभी न कह पाए

यूँ ही सजा लेते हैं अरमान सज़ा देते हैं खुद को, तुमको दिल से पर हम कभी दफ़ा न कर पाए 

वफ़ाये नाम रहा हूँ ताउम्र रुसवाई मिली है, और देखो फिर तुम भी वफ़ा न कर पाए__उमेश सिंह

Saturday, March 31, 2012

FOUR LINES AGAIN


तहरीर जो दी थी तुमने मेरे इस दिल में आने की, रोक देना था मुझे उसी वक़्त तुम्हे कसम दे के जमाने की

ग़र कसम ही खाई थी तुमने नींदें चुराने की, यूँ ही ले जाते रूह हमारी क्या जरूरत थी मेरी धड़कनों पर ऍफ़आईआर कराने की

घुटन की सिलवटों  में खुद को बंद कर लिया कैदियों की तरह, तुम्हे क्या जरूरत थी फिर मेरी जमानत करवाने की

उम्मीद थी एक बार आसमान के नीचे तुमसे मिलने की, भला होगा सच ग़र तुम अर्जी दो मेरी सजाए उम्र क़ैद बढ़वाने की____उमेश सिंह