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Wednesday, November 7, 2012

कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है

कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !
चौरस से लूटा था जिसने महाभारत में जिसका हाथ है, करवाए संहार दुबारा उससे ही अब कुछ आस है !
अम्बानी की जेब में संसद, सांसदगण तो जिन्दा लाश हैं, क्या द्रोपदी हुआ है देश ये प्रश्न सताता आज है !
कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !
मकड़जाल में फंसी है जनता भ्रष्टाचार बना इक पाश है, नेताओं से उम्मीद अधम है भ्रष्ट-आचार जिनका विश्वास है !
भीष्म बने बैठे हैं वो जिनको इसका आभाष है, कहकर मैं भी चुप हो जाऊं क्या ये खुद का नहीं परिहास है ?
कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !
अगन धरा पर जल बन बरसे न जलेंगे ये संताप है, किस मिटटी के बने हैं ये क्या इन्हें जरा भी लाज है ?
अघोषित यमराज हुए हैं ये दोष लगाना भी इनपे पाप है, कहते-कहते थक जाओगे मर जाओगे इनका चोला हरपल साफ़ है !
कौरव रावण बहुत हुए अदद शकुनी की एक तलाश है, महाभारत फिर करवाए जो शकुनी से बस ये आस है !

उमेश सिंह

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