Powered By Blogger

Monday, December 5, 2011

My Lines


तुम में ही सिमट के रह गए हैं हम ये कैसी खुद की रूह को मैंने सज़ा दी है

तेरे अहम की ख़ामोशी न टूटे न रूठे तेरा अहम कभी, इसलिए ख़ामोशी खुद की हमने बढ़ा दी है

अहमियत कुछ ज्यादा है तेरी मेरी नजरों में, तेरे लिए मैंने अपनी नजरों से झुकने की इल्तज़ा की है

न समझे हो मुझे न समझो ग़र मेरे प्यार को,समझना मैं था ही नहीं कभी, खुश रहो तुम तुम्हारे खुश रहने की

हमने हर पल दुआ की है______उमेश सिंह

No comments:

Post a Comment