Powered By Blogger

Tuesday, October 8, 2013

मादरे वतन की सेवा को मेरा आखिरी नमन आया है 
देख तिरंगे में लिपट के सरहद से तेरा रतन आया है 

साँस भारी थी नब्ज रुकने तक तिरंगा उठाया है 
कदम न रुके थमने तक सरहदे फिर नापाक साया है 

खादी यहाँ हुई निशक्त यूँ जीना डरके जाया है
अमन शक्ति से होता कायम पुरखों ने ये फ़रमाया है

सर काटे संसद बांटे भरम उसे ये आया है
सबक सिखा दो इस बारी की देश अभी झुंझलाया है

मौत मेरी थी मैं खुश हूँ शहीदों में नाम जुड़वाया है
रूह मेरी अब भी सीमा पर यूँ उसको सफल बनाया है

मादरे वतन की सेवा को मेरा आखिरी नमन आया है
देख तिरंगे में लिपट के सरहद से तेरा रतन आया है


उमेश सिंह 

No comments:

Post a Comment