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Sunday, August 21, 2011

सरकार का नया भ्रष्टाचार-भावनाओं का भ्रष्टाचार

              भ्रष्टाचार नेताओं का वो पहला प्यार है जिसको कभी कोई अपने से दूर नहीं करना चाहता.......!! मैं शाब्दिक और लिखित रूप से विचारों का भ्रष्ट हूँ ! संभवतः इस लेख से यह साबित हो सके पर क्या किया जाये अर्थ रूप में इमानदारी नहीं  पढाई जा सकती है तो ऐसा होना सही है ! मुझ भ्रष्ट पर कोई कार्यवाही होनी चाहिए, मैं इसके लिए तैयार हूँ पर  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने मुझे और मुझ जैसे कितनों को इस तरह लाभान्वित होने से बचा रखा है ! वरना केजरीवाल, किरण बेदी और अन्ना जी जैसे कितने सख्शियतों के साथ जेल में कुछ पल गुजारने का मौका हमको भी मिल पता !
                                          प्रधानमंत्री को ईमानदार कहा जा रहा है क्यूँ ? कईयों के विचारोंन्मुख से सुन चूका हूँ ! पर मुझे इस वक़्त उनसे ज्यादा कोई भ्रष्ट कोई दिख ही नहीं रहा ! सज्जनता तब तक सुहाती है जब तक आप बार-बार कीचड़ में  न गिराए जायें! जहां पूरा देश आपसे उम्मीद कर रहा है आप मौन हैं कुछ इस तरह की अपनी बात हम कह भी सकते कहने के  लिए हम उनको चुनें जो खुद कहना नहीं जानते ! जब आपको जनता ने   चुना और  जनता आज खुद सड़क पर   है! तो क्या ये देखना भी मुश्किल है की हम क्या चाहते हैं ! अब सरकार देश  के नागरिकों के साथ भावनाओं का भ्रष्टाचार कर रही है ! 
                          चवन्नी भर भ्रष्टाचारियों को सह देते हुए रुपया भर जनता   के साथ  यह खेल कितने दिनों तक खेला जा सकता है समय बताएगा पर निश्चित रूप में  भ्रष्टाचार सरकार सरकारी नेताओं के लिए घाटे का सौदा होने जा रहा है ! 
विपक्ष का दोहरा रवैया भी समझ से   परे है ! सारे नेताओं को एक ही डर है  हमारी शक्तियों का विकेंद्रीकरण हो जायेगा जो हमे सिर्फ संविधान में लिखित और भाषणबाजियों में अच्छा लगता है की हम विकेंद्रीकरण में विश्वास करते हैं,पर वास्तव में वो आपसे वो झूठ बोल रहे होते हैं ऐसा आप जानते हो ! अन्ना पर तानाशाही का आरोप लगा रहे हैं, समझ से परे है! कपिल सिब्बल, दिग्विजय ,चिदंबरम खुद को तो जनता के सामने प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं जनता को क्या प्रस्तुत करेंगे ???
               आप गलत हो सकते हो पर जब आप जानते हो की आप गलत हो और आप उसे बेशर्मों की तरह स्वीकार कर रहे हो तो यह स्थित घातक होती है आपके लिए और जब आप आधिकारिक सक्षम हैं तो यह एक समूह के लिए भी घातक है !
संभवतः इतने गंभीर विषय पर लेख लिखना मेरी समझ से ज्यादा विस्तृत होगा पर इतना तो समझ में आता है की सामने क्या हो रहा है !!
                            अन्ना में वो हिम्मत है जो खुल के बोल रही है की मेरी जांच करवा लीजिये, सरकार का कोई एक नुमाइन्दा नहीं दिखा इस पर टिप्पणी लेकर या फिर मेरी भी करा लीजिये बोलते हुए क्यूँ ?? लोकपाल तीन लोकपाल बिल जन लोकपाल,सरकारी लोकपाल और अब कोई अरुणा भी आ गयी है उनका लोकपाल  तीनों  लोकपालों में सिर्फ एक में जन लगा है और जनता उससे जुडी भी है बहुतायत में ! कितना मुश्किल है ये समझना !
                                       
                     उस विचार को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता जिसका उदगम हो चुका हो ! गलत सही का फैसला समय करेगा पर फिलहाल तो यही सही है, सरकार को देख चुके !
अब सरकार के बाद अन्ना के साथ 
जय हिंद

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