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Monday, May 2, 2011

MY LINES-UMESH SINGH

लोग क्यूँ कहते हैं आँखें बेजुबाँ होती हैं
ख़ामोश रहकर भी सब बयाँ कर देती हैं
बोलती हैं उनकी आँखें और हमें बेजुबाँ कर देती हैं
राहें भी दिखाती हैं राहें भी बताती हैं जीने के
सारे तरीके भी सिखाती हैं पैबस्त होती हैं दिल में
...दिल को दिल का हाल बयाँ कर देती हैं
कौन कहता है आँखें बेजुबान होती हैं
 
 
 
 
मुझे भी अपनी आँखों की जादूगरी सिखा दो
आँखें मिलाकर फिर आँखें चुराना सिखा दो
दो लफ़्ज कहने थे इन आँखों को तुम्हारी आँखों से
इन्हें भी ख़ामोश रहना सिखा दो,मेरी आँखों को चुप रह कर रोना सिखा दो
देखकर तेरी आँखों को ख़ुशी मिलती है इन आँखों को सलामत रखो
मेरी परवाह मत करो मेरी आँखें जला दो-मेरी आँखें जला दो
 
हमें उनकी आँखों की परवाह थी इसलिए हम उनसे आँखें न मिला सके
हरवक्त वो चुप बैठे थे हमारे पास और हम उन्हें जरा सा भी न हंसा सके
करें क्या हम अब उन लम्हों को याद करके जो उन्हें हमारे पास न ला सके
वो हमे याद करें न करें किसी पल हम उन्हें एक पल को भी न भुला सके
हमें याद है उनकी हर एक बात जो जिक्र न आने पर भी याद आती हैं
उम्मीद है वादा जो कर गए थे वो हमसे, मेरे लिए उस वादे को निभा सके
 
अब हँसाते भी नहीं तुम रुलाते भी नहीं उम्मीद बनकर रहते हो दिल के पास,तुम दूर जाते क्यूँ नहीं
किसी और को देख कर ये बेरहम दिल उसका हो जाये इसलिए कमबख्त इसको को हम मानते भी नहीं
मैं मेरे पास तक ही रुक कर रह गया हूँ तुम जाने क्यूँ,अपने पास तक आने का रास्ता बनाते ही नहीं
सोचा था तुम्हारा अच्छा दोस्त बनकर ही रह लूँगा,क्या करूँ सच है तुम साथ निभाते ही नहीं
 
मेरे दिल से सवाल मत करो जवाब नहीं है उसके पास,उनसे ही पूछना वो उस बेमुरव्वत को अपने साथ कर गए
उनकी खूबसूरत आँखें जो देखीं एक बार क्या, क़त्ल किया खुद का और अपनी आत्मा को तन्हा कर गए
अभी मिला था खुद से,ख़ुदा से पूछा भी क्यों किया ऐसा मेरे साथ,सच कहता हूँ वो भी इस सवाल से डर गए
अब वो वापस आयेंगे पर हम उनसे आँखें न मिला पाएंगे,शायद हम अपनी आत्मा की एक और मौत से डर गए.. उमेश सिंह
 
 
 
 

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