Powered By Blogger

Tuesday, January 5, 2010

बर्फ का टुकड़ा...... |


अभी तक मैं ठोस था मेरी सीमाएं स्पष्ट थी स्थान निर्दिष्ट था

अब मैं पिघल रहा हूँ अनायास घुल रहा हूँ तरल बन रहा हूँ

नीचे...
नीचे...
नीचे...

कहीं तो ठहर जाऊंगा किसी गड्ढे में अपनी परिधि प् जाऊंगा

अंजुली भर मुझे उठाने की चेष्टा न करना

ऊँचाइयों से अब घबराता हूँ .........

V.P.Singh

No comments:

Post a Comment