दरिया टूट के आगोश में समंदर के आज यहाँ, नेस्तनाबूत होगा
दिनों से था जो दर्द वजहे प्यार से मुखातिब, महफिले आज वो ताबूत होगा
जुर्रते रज़ा दिल की थी क्या करता, अब नासाज़ी भी तजुर्बे साबूत होगा
मसरूफियत खुदसे होगी खुदसे होगी मुहब्बत, जर्रा भी मेरा मुझसे नाटूट होगा
उमेश सिंह
दिनों से था जो दर्द वजहे प्यार से मुखातिब, महफिले आज वो ताबूत होगा
जुर्रते रज़ा दिल की थी क्या करता, अब नासाज़ी भी तजुर्बे साबूत होगा
मसरूफियत खुदसे होगी खुदसे होगी मुहब्बत, जर्रा भी मेरा मुझसे नाटूट होगा
उमेश सिंह
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