नेता बैठे समाचार में मंद मंद मुस्काते
पूछो बात विकास की तो बुर्का ओढ़ के जाते
समाचार विश्लेषड में खुदही को सत्य बताते
तथ्यपरक तो हैं मुमकिनन पर मुद्दे से भटकाते
विभीषण के जो शब्द लिखूं तो ऐसे मुंह बिचकाते
कथनी करनी-करनी कथनी में सभीको गलत ठहराते
फंदा ढीला फेंका और मजबूत पकड़ जतलाते
निकल भगा है वो जो देखो भाऊँ भाऊँ चिल्लाते
करते सौदा पैसों का जनसेवा है स्वांग रचाते
फंसके खुद ही खुद के जाल में खट्टे अंगूर बताते
धन की सुनते जन की कहते हर जगह पे जाल बिछाते
वंशवाद की प्रथा बढ़ा कर उसको घर से संसद तक फैलाते
खुद की गर्दन फंसी कभी तो अंत शंट चिल्लाते
वो है ये है-ये है वो है में नेता प्यारे भर्ष्टाचार ही गोल कर जाते
नेता बैठे समाचार में मंद मंद मुस्काते
पूछो बात विकास की तो बुर्का ओढ़ के जाते
उमेश सिंह
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