हर शब्द से सीखिए हर भाव से सीखिए, मिलता जाये जो उसे बड़े चाव से सीखिए
मुश्किलें हल हो जाएँगी यूँ राह चलते हुए उस पथ पे गुजरे हर पाँव से सीखिए
पतछड़ भी होगा बे-मौसम, पत्तियों के फिर लौट आने वाले स्वाभाव से सीखिए
गहरा पड़े निशान ऐसा जलो तुम, न बुझने वाले दिए के ताव से सीखिए
समय नदी सा बह जायेगा, कैसे बढ़ते जाएँ विपरीत धारा में चलती नाव से सीखिए
शेर हैं झुंडों में तो बकरियां भी जिन्दा, प्रकीर्ति के इस अनूठे प्रभाव से सीखिए
उमेश सिंह
मुश्किलें हल हो जाएँगी यूँ राह चलते हुए उस पथ पे गुजरे हर पाँव से सीखिए
पतछड़ भी होगा बे-मौसम, पत्तियों के फिर लौट आने वाले स्वाभाव से सीखिए
गहरा पड़े निशान ऐसा जलो तुम, न बुझने वाले दिए के ताव से सीखिए
समय नदी सा बह जायेगा, कैसे बढ़ते जाएँ विपरीत धारा में चलती नाव से सीखिए
शेर हैं झुंडों में तो बकरियां भी जिन्दा, प्रकीर्ति के इस अनूठे प्रभाव से सीखिए
उमेश सिंह
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