बह कर हवा इन दरख्तों तक आती है तेरे घर से, इन दरख्तों पे बंदिशें क्यूँ लगा रहा हूँ मैं
मुसाफ़िर की तरह थे तुम मेरे जिन्दगी के पन्नों में जिन्हें मैं जानता था अपनी अहमियत से ज्यादा, उन्ही पन्नों को दूंढ कर हर यादें क्यूँ जला रहा हूँ मैं
ये तो सच है तुम न थे कभी मै था तुझमे दरम्यान बनकर खुद पर दोष क्यूँ लगा रहा हूँ मैं
भीगी सी उन यादों में जो सुलगती है ''बिना जले'' जल रहा हूँ आती जाती इन सर्द हवाओं से ''बेवजह ही'' ये क्या और क्यूँ किये जा रहा हूँ मैं_____उमेश सिंह
मुसाफ़िर की तरह थे तुम मेरे जिन्दगी के पन्नों में जिन्हें मैं जानता था अपनी अहमियत से ज्यादा, उन्ही पन्नों को दूंढ कर हर यादें क्यूँ जला रहा हूँ मैं
ये तो सच है तुम न थे कभी मै था तुझमे दरम्यान बनकर खुद पर दोष क्यूँ लगा रहा हूँ मैं
भीगी सी उन यादों में जो सुलगती है ''बिना जले'' जल रहा हूँ आती जाती इन सर्द हवाओं से ''बेवजह ही'' ये क्या और क्यूँ किये जा रहा हूँ मैं_____उमेश सिंह
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