जिसकी तोहमतों को भी अपनाना था, निगाहें मुवस्सर न हुईं उनकी आख़िरी मुलाकात में
ख़ूबसूरती से चले आतें हैं वो कभी यूँ ही, पैमाने में हमारे सुबह-शाम धड़कते जज़्बात में
वो उनका हमसे नजरें फिरा के चले जाना न कभी वापस आना, न ही हमसे कहीं दूर जाना
मसरूफ कर देता है वो उनका दोस्त कहना दिलासा देना, कहा था उन्होंने जो उस बरसात
में
जिसकी तोहमतों को भी अपनाना था, निगाहें मुवस्सर न हुईं उनकी आख़िरी मुलाकात में
___उमेश सिंह
ख़ूबसूरती से चले आतें हैं वो कभी यूँ ही, पैमाने में हमारे सुबह-शाम धड़कते जज़्बात में
वो उनका हमसे नजरें फिरा के चले जाना न कभी वापस आना, न ही हमसे कहीं दूर जाना
मसरूफ कर देता है वो उनका दोस्त कहना दिलासा देना, कहा था उन्होंने जो उस बरसात
में
जिसकी तोहमतों को भी अपनाना था, निगाहें मुवस्सर न हुईं उनकी आख़िरी मुलाकात में
___उमेश सिंह
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