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Monday, July 4, 2016

कहाँ कुदरत से पर्देदारी है ?

माँ काली है या गोरी ?
पिता कौन धर्म से आता है ?

कल ही तो जुबां मुकम्मल की
फिर नफ़रत कौन सिखाता है ?

रंग सुबह का कैसा है ?
कैसी रातें उजलाई हैं ?

दो दिन की दुनियादारी
फिर क्यूँ लाशें फैलाई हैं ?

किसका लहू सुफेद हुआ है ?
किस किस की ज़िम्मेवारी है ?

चुप रहलो पर सुनोमेश
कहाँ कुदरत से पर्देदारी है ?


उमेश सिंह



Tuesday, April 5, 2016

शून्य सच है आखिरी

आइना पारदर्शी होके आस्तित्व को नकार दे
शून्य सच है आखिरी निराकार को आकार दे
साध दुनिया में बस एक होनी चाहिए
कुत्सित न हो इरादतन भावना बस नेक होनी चाहिए
अहंकार में जीने की सम्भावना को नकार दो
आस्तित्व जो बचा सके बस उतने को आकार दो
अग्रगामी हो प्रवित्ति पथ पे दृष्टि होनी चाहिए
भयावरण से हो पृथक हर नस भिगोनी चाहिए
मेघ वर्षा प्रकीर्ति भांति सबको इक सत्कार दो
वसुधैव कुटुंबकम का एक ही व्यवहार दो
सत्य चोला वाणी कोमल मन उमंग लिबास होनी चाहिए
स्वउत्थान मकसद देश मस्तक सुनोमेश ये अरदास होनी चाहिए
सुभित शोभित आचरण को निलय सा प्रसार दो
कामना ऐसी करो और खुद को ये विस्तार दो
उमेश सिंह


Friday, March 11, 2016

काव्यनीति

वेदना की शब्दवीथी न मेरी है ये काव्यनीति
है शशंकित मन जो तेरा उबार लूँ मैं यही प्रीती

राह पर नेपथ्य के चलना कठिन बस आज भर
कौन जाने क्या है आगे भविष्य तो बस राज धर

फुर्सतों की सोच में लिख दूँ इरादे नेक मैं
रख लूँ सलाहें काम की दूँ अनर्थ बाकि फेंक मैं

तुम मांगते अनर्थ को मैं अर्थ को ही मान दूँ
जाहिलों सी है बहस मैं वाजिबों पर ध्यान दूँ

सरल लिख दूँ सार भी लिख दूँ गरल मैं साम्य को
लिख दूँ दनावल कनक की जो कनक को ही मान्य हो

भीड़ में तुम हो खड़े भीड़ ही बनकर अड़े
नींद से जागो सुनो तुम खुद की खातिर रो पड़े

झकझोर दूँ आवाज से इस सोच को निहारता
घनघोर बारिश अब थमे सुनोमेश है पुकारता

पुकारता की कर्म कर बस कर्म पर अभिमान कर
उलझनों से निकल बाहर बस राष्ट्र का कल्याण कर


उमेश सिंह

Tuesday, February 2, 2016

हवाओं से धर्म पूछो सांस लेने से पहले
दुआओं का मर्म पूछो आस देने से पहले
शुक्र है खुदाऐ बंदोबश्त तेरे हाथ न रही
किसी की नब्ज़ जांच लो जान लेने से पहले
दरिया का विश्वास समंदर को रहने दो
क्यों होठ थाम लेते हो राम कहने से पहले
तुम्हारी जेहनियत को किसके सर का ताज कर दूँ
क्यों अल्लाह को बाँटते हो शख़्सियत जान लेने से पहले
सिंह उमेश

Saturday, January 23, 2016

Poetic Story Of Unborn Girl

मुझे आज भी दर्द है तेरी बहन को कोख से गिराने का
सोचती रह जाती हूँ वाहियात है वर्चस्व पुरुषों के ज़माने का
पर तेरी भी गलती माँ थोड़ी जरूर है
तुझको भी बेटे की माँ होने का गरूर है
रख लूंगी बिटिया तुझे पेट में सड़ने तक मरने को
कह दूँगी जहां काबिल नहीं तेरे ज़िंदा रहूंगी ताउम्र आहें भरने को
ऐसा कहके तुम खुदको कमजोर बनाती हो
अनजाने में सही पर बेटियों पर बेटों की सत्ता दिखाती हो
कहती तो हूँ पिता से मैं तेरे
आने दो बिटिया को अंगना में मेरे
क्यों माँ हर जन्म पे व्यवहार तेरा नौ माह ज्यादा है
तू लड़ मेरे लिए सोचके किसी और से मुझपे तेरा अधिकार ज्यादा है
कैसे लड़ूं पिता तुझे अभिशाप मानते हैं
बेटियां बेटों से कम हैं ऐसा वो कोख से जानते हैं
हँसूं इस बात पे या रो-रो के जान दूँ
ऐसे पिता को क्यों और कैसे अब मान दूँ
आज फिर कोशिश करुँगी की पृतित्व ही मान जाएं
बेटियों से ही ब्रम्हांड है शायद वो जान जाएं
माँ ये तरीका ये कोशिश तेरी शुरुआत से व्यर्थ है
सदियों से जो कहती हो बात फिरसे कहने का क्या अर्थ है
फिर तू ही बता या ईश्वर से कह मुझे कोई रास्ता दे
विध्वंस न हो प्रकीर्ति का पुरुषों को ये वास्ता दे
तू सुन पायेगी कह पायेगी जिनकी तू हर बात मानती है
वो अधर्म करें फिरभी तू उन्हें पति परमेश्वर जानती है
तू बोल बेटी तेरे लिए अब कुछ भी करुँगी
तुझे गवां जिन्दा लाश बन अब न आहें भरुंगी
तो सुन तू ये बात कहना पिता से
अब प्यार पाएंगे वो तेरी चिता से
कहना की ऐसे न तुमसे बनेगी
मरेगी जो बेटी तू न बेटा जनेगी
मुझे बचाने को सर्वस्व ही झोंक देना
समय की गति को अपने क्रोध से रोक देना
शाम बताना सहर भी बताना
बेटियों पे बेटों का कहर भी बताना
कहना की औरत से तुम भी जने हो
औरत से मिलके पुरुष तुम बने हो
बेटी को तुम क्युँ न बेटा बनाओ
वास्तविक पुरुषत्व दुनिया को दिखाओ
कहना की पुरुष असल में वही है
बेटा या बेटी जिसको दोनों सही है
सच है तू बेटी मैं ऐसा रहूंगी
पितासे से तेरे न कुछ मैं कहूँगी
लेगी जन्म मेरा वादा है तुझसे
गर तू मुझसे है तो मैं भी हूँ तुझसे
कहूँगी पुरुष असल में वही है
बेटा या बेटी जिसको दोनों सही है
उमेश सिंह

Tuesday, December 29, 2015

भारत के हर सैनिक महादेव है


वो बटुए में परिवार से मुलाकात करे
थोड़ा सा हंस दे और फिर सवालात करे

पूछे की माँ कैसी है तू खुश रहना की जैसी है तू
दिया तूने मुझको वतन के लिए कोई पूछे बताना की ऐसी है तू 

फिर नजर से वो बचपन को है देखता
उसका बच्चा उसी की तरह रेंगता

छूता उसको के सच में उसे चूम ले ]
लेके बाँहों में उसको जहां झूम ले

देखके बहना को वो हंसा जोर से
लड़ती मुझसे जो होती यहां भोर से

अपनी पत्नी से आँखें चुरा के वो बोला
आऊंगा मिलने तुझसे ले हार सौ तोला

उसी बगल में पिताजी खड़े लगे ऐसे जैसे की पर्वत बड़े
बिन कहे कुछ वो बोले, न लौटे दुश्मन जो तेरी नजर में चढ़े

भाई के भी पिता से ही जज्बात थे
पिछली हर बातों में देश सेवा के ही बात थे

सोचके बातें उनकी वो कठोर हो गया
देश पहले है सबसे वो भावा विभोर हो गया

बंद करके बटुए को वो खड़ा हो गया
कुछ इस तरह खुदा से बड़ा हो गया

थामा बन्दूक उसने बाजुओं की जोर से
बाँधी सांसें फिर अपनी वतन की डोर से

दिल को रोका न उसने धड़कने दिया
यूँ लहू को नसों में फड़कने दिया

आँखें उसकी बड़ी रक्तलाल हो गयीं
दुश्मनों के लिए महाकाल हो गयीं

थर्राया हिमालय उसकी ललकार से
हुए महादेव भी चकित इस हुंकार से

बोले के सती ये तो संहार है
ये तो भारत के सैनिक की ललकार है

खैर उनकी न है जो वहां बैर हैं
उस धरा पे हर सैनिक महादेव है

इतने में दुश्मनों के वो बीच आ गया
सौ भेड़ियों पर अकेला वो शेर छा गया

हर हर महादेव की ध्वनि थी जाग उठी
एक-एक की रूह उनका साथ छोड़ भाग उठी

फिर किसी ने पीठ में चुपके से घात किया
गिरते ही वो उठ खड़ा हो उठते ही आघात किया

मृत्यु दान सबको कर वो तिरंगे को फहरा उठा
धुंधली तस्वीर आते देख वो शस्त्र फिर लहरा उठा

देखकर के अपने सैनिक वो सकूँ में खो गया
मातृभूमि की सेवा को वो माँ के गोद में सो गया

उमेश सिंह


नए वर्ष पर सभी सैनिकों को समर्पित एवं सभी शहीदों को श्रद्धांजलि

Monday, December 21, 2015

स्वच्छ भारत अभियान

श्रीमान
प्रधानमंत्री महोदय
नरेंद्र मोदी जी

विषय - स्वच्छ भारत अभियान

महोदय,
आपकी इक्षाशक्ति नेक विचार और स्वछता के प्रति आपकी पवित्र भावना से प्रेरित हो आपके विचारों को शब्दों के माध्यम से संचारित करने की मंशा और निर्देश का इंतज़ार करूँगा।
मैं इस बात से पूर्णतः आशवस्त हूँ की जो सन्देश आप तक पहुँचाना चाहता हूँ उसका महत्व आपके निर्देश से परिलक्षित एवं परिणाम फलीभूत होगा।
संचार के बाढ़ में लोग हर वक़्त नए समाचार के खोज में अर्थ की बातें याद रखने में असमर्थ होते जा रहे हैं। आपके लाख बार स्वच्छ देश की कल्पना को आघात लगाने में एक पल का भी संकोच नहीं करते अतएव मैं आपसे प्राथना करता हूँ की इस दिशा में मौखिक सहयोग की अपेक्षा के अलावा लिखित निर्देशों को भी सम्मिलित करें। लिखित निर्देशों से मेरा तात्पर्य विभागीय निर्देशों से न होकर प्रचार वाक्यों के उपयोग से है। हमने आपने सम्भवतः सबने गाड़ियों के पीछे लिखे हुए शब्द और शायरियां पढ़ी हुई हैं दीवारों पर विभिन्न प्रकार के वाक्य पढ़ते आ रहे हैं तो क्युं न हम भी इस तरह के प्रचार का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान के लिए करें। बोले हुए शब्द भुलाये जा सकते हैं सैकड़ों बार सुने हुए शब्द भी भूले जा सकते हैं पर लिखे हुए शब्द अगर प्रभावशाली हों तो आत्मा में उतरते हैं जगह बनाते हैं और उस काम को करने को प्रेरित करते हैं।
मैं इस बात में पूर्ण विश्वास करता हूँ की खुले में लघु शंका, कूड़े फेंकने की समस्या पान खाके थूकने की आदत पर लगभग लोग दस बार विचार करेंगे।
इसी सन्दर्भ में मैं यहां पर दीवारों पर लिखने हेतु कुछ प्रचार वाक्य जो इस अभियान में काम आ सकते हैं लिख रहा हूँ उम्मीद है मेरी बात इस अभियान में कुछ सहयोग कर पायेगी।
१- सौ कदम आगे शौचालय है
२- देश आपका स्वच्छ होगा आपके ही साथ से
पूरा होगा सपना गंदगी नहीं होगी जो आपके हाथ से
३- कैसे तुम भारत को स्वच्छ बनाओगे
बिन सोचे यहाँ वहाँ जो गंदगी फैलाओगे
४- थोड़ा कष्ट तुम भी देश के लिए उठाओ
कूड़े को सड़क नहीं कूड़ेदान  पहुँचाओ
५- सीसीटीवी देखो लगा है तुम्हारे सामने
ढूंढ लेंगे छुपे हो चाहे जिस जहान में


धन्यवाद
उमेश कुमार सिंह
ग्राम व् पोस्ट अशोकपुर
नवाबगंज गोंडा
उत्तर प्रदेश
२७१३०३