रख लूंगी बिटिया तुझे पेट में सड़ने तक मरने को
कह दूँगी जहां काबिल नहीं तेरे ज़िंदा रहूंगी ताउम्र आहें भरने को
ऐसा कहके तुम खुदको कमजोर बनाती हो
अनजाने में सही पर बेटियों पर बेटों की सत्ता दिखाती हो
कहती तो हूँ पिता से मैं तेरे
आने दो बिटिया को अंगना में मेरे
क्यों माँ हर जन्म पे व्यवहार तेरा नौ माह ज्यादा है
तू लड़ मेरे लिए सोचके किसी और से मुझपे तेरा अधिकार ज्यादा है
कैसे लड़ूं पिता तुझे अभिशाप मानते हैं
बेटियां बेटों से कम हैं ऐसा वो कोख से जानते हैं
हँसूं इस बात पे या रो-रो के जान दूँ
ऐसे पिता को क्यों और कैसे अब मान दूँ
आज फिर कोशिश करुँगी की पृतित्व ही मान जाएं
बेटियों से ही ब्रम्हांड है शायद वो जान जाएं
माँ ये तरीका ये कोशिश तेरी शुरुआत से व्यर्थ है
सदियों से जो कहती हो बात फिरसे कहने का क्या अर्थ है
फिर तू ही बता या ईश्वर से कह मुझे कोई रास्ता दे
विध्वंस न हो प्रकीर्ति का पुरुषों को ये वास्ता दे
तू सुन पायेगी कह पायेगी जिनकी तू हर बात मानती है
वो अधर्म करें फिरभी तू उन्हें पति परमेश्वर जानती है
तू बोल बेटी तेरे लिए अब कुछ भी करुँगी
तुझे गवां जिन्दा लाश बन अब न आहें भरुंगी
तो सुन तू ये बात कहना पिता से
अब प्यार पाएंगे वो तेरी चिता से
कहना की ऐसे न तुमसे बनेगी
मरेगी जो बेटी तू न बेटा जनेगी
मुझे बचाने को सर्वस्व ही झोंक देना
समय की गति को अपने क्रोध से रोक देना
शाम बताना सहर भी बताना
बेटियों पे बेटों का कहर भी बताना
कहना की औरत से तुम भी जने हो
औरत से मिलके पुरुष तुम बने हो
बेटी को तुम क्युँ न बेटा बनाओ
वास्तविक पुरुषत्व दुनिया को दिखाओ
कहना की पुरुष असल में वही है
बेटा या बेटी जिसको दोनों सही है
सच है तू बेटी मैं ऐसा रहूंगी
पितासे से तेरे न कुछ मैं कहूँगी
लेगी जन्म मेरा वादा है तुझसे
गर तू मुझसे है तो मैं भी हूँ तुझसे
कहूँगी पुरुष असल में वही है
बेटा या बेटी जिसको दोनों सही है
उमेश सिंह