तुम में ही सिमट के रह गए हैं हम ये कैसी खुद की रूह को मैंने सज़ा दी है
तेरे अहम की ख़ामोशी न टूटे न रूठे तेरा अहम कभी, इसलिए ख़ामोशी खुद की हमने बढ़ा दी है
अहमियत कुछ ज्यादा है तेरी मेरी नजरों में, तेरे लिए मैंने अपनी नजरों से झुकने की इल्तज़ा की है
न समझे हो मुझे न समझो ग़र मेरे प्यार को,समझना मैं था ही नहीं कभी, खुश रहो तुम तुम्हारे खुश रहने की
हमने हर पल दुआ की है______उमेश सिंह
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