क्या आपको अपने न्याय तंत्र पर भरोसा है ?
ये एक ऐसा सवाल है जो आज किसी भी भारतीय से पूछा जाये तो उसका जवाब ना के बराबर हाँ होगा मतलब अगर वो हाँ भी कहे तो उसका मतलब ना ही समझ लेना चाहिए ! और ऐसा इसलिए नहीं की वाकई में हमारी न्याय व्यवस्था में गड़बड़ी है बल्कि ऐसा इसलिए है क्योकि हमारे राजनेताओं, और समाज के उन ठेकेदारों की नाजायज़ पहुँच काफी बढ़ गयी है जो गुनाहगारों को बचाने का ठेका ले लेते हैं ! अब तक रिकार्ड को देखा जाये तो यही पता चलता है अगर सही फैसला आ भी जाता है तो जमानत हो जाती है यानि अपराधी को फिर से अपने बचाव पक्छ को मजबूत करने का मौका दे दिया जाता है! कसाब को फाँसी हो या ना हो कोई फर्क नहीं पड़ता है पर उस आतंकवादी का ये वक्तव्य मायने रखता है जिसमे उसने कहा की मैं चुनाव लड़ना चाहता हूँ ... क्या ये समझने के लिए काफी नहीं है की हम अगर नेता हुए तो बेदाग़ हुए मियाँ फिर काहे के आतंकवादी ! अभी दो दिन पहले ही जिस तरह से भोपाल गैस के पीड़ितों को न्याय मिला है उससे तो पता चल ही गया की
ना बीबी ना बच्चा.... द होल थिंग इस दैट की सबसे बड़ा ........
अब न्याय की आस में आँखें पथरा जायें तो भी क्या गम न्याय मिला पर सिर्फ दो साल या कहें जिन्दगी गुजार दी जिस सनम की चाह में वो आये देर, दुरुस्त भी पर सिर्फ ये पूछने जिन्दा हो अभी मैं तो कब्र पर आया था